उदास बसन्त
रात बीत जायेगी फिर सवेरा होगा कल मनायेंगे बसन्त सूरज को आना ही है रोशनी में बतियायेंगे पत्तों से पेड़ों में फूल पगडंडी पर खुशबू लदी है...
रात बीत जायेगी फिर सवेरा होगा कल मनायेंगे बसन्त सूरज को आना ही है रोशनी में बतियायेंगे पत्तों से पेड़ों में फूल पगडंडी पर खुशबू लदी है...
पेड़ों ने पहन ली हैं सफेद टोपियां बर्फ क्या गिरी हिमालय और पास आ गया और तुम्हारी याद भी जिसका बचपन बर्फ के गोले दागने में बीता है वह मैं...
सरल बातें जो रोज घटती हैं अक्सर सरल नहीं होती सूरज रोशनी देता है दिन भर एक चमकदार रोशनी अंधेरे से जूझते इंसानों का पथ प्रदर्शक है सूरज...
फिर हवाओं ने छेड़ दिये हैं गीत आंगन गमक गया है अन्न की सुगन्ध से आसमान में कुलांचे भरने लगे हैं परिन्दे गांव उतर गये हैं खेतों में गुलाबी...
बच्चे बड़े होना चाहते हैं आस-पास देखते हुए वे झटपट बड़ा हो जाना चाहते हैं खेतों में मिट्टी से खेलते बच्चे हल की मूठ पकड़ना चाहते हैं...
उसका बचपन मां के संग खेतों में बीता अपनी उम्र और शरीर से ज्यादा काम करते हुए उसके खेल डंगर, दरान्ती, मिट्टी और घास के गट्ठर थे इन्हीं के...
जिनका कोई नहीं है न ठौर और ना ही ठिकाना उनका भगवान है ठंड से ठिठुरते इस शहर में यही पढ़ाया गया है हमें पीढ़ियों से रटे इस ज्ञान को आने...
शहर में सांझ तक निरूद्देश्य भटकता रहा सांस टूटने की चटख तीर सी बिंध गई लो आज का दिन भी दूर से अलविदा कह गया क्या पता जीवन की दौड़ में कौन...
गाड़ी सड़क पर.दौड़ रही है यहां एक जंगल था हरा-भरा और दृष्टिपथ तक फैलता हुआ और एक नदी थी तस्वीरें उभर रही हैं कई पहाड़ियों को पीछे छोड़कर...
पहाड़ियों को चूमकर सूरज आंगन तक क्या आया खेतों में पानी से भरी थालियां चांदी सी चमकने लगी बर्फ से ढकी चोटियां शरमाई और दुल्हन के मुख सी...
सांय-सांय करते भग्न अवशेष किसी के साकार हुए स्वप्नों की परिणति निज उर में नितान्त निजी शोभा समेटे है इन्हें सिर्फ तुम्ही दुलारना छूटती है...
जिधर उड़ाया उड़ गये धूप भी तो छांव भी है जिन्दगी गांव में क्या रुकी एम्बेसडर नई शीशों को छूते बच्चे हो गई जिन्दगी मल्यो' की डार से स्वप्न...
आंगन चिड़ियों का भी है और बुरकती नवजात दुर्गी बछिया का भी आंगन के चप्पे-चप्पे पर चस्पां हैं यादों के हुजूम आंगन में फैलाये गये अनाज के...
तकलीफ सच ! तकलीफ यही है आदमी होकर जीने की तकलीफ पूंजी के गर्भ से जन्मी अव्यवस्थित होड़ में शरीक होने की मजबूरी मजबूरी समृद्ध होकर आदमी...
सावन में बरसते बादल एकाकार हैं सब न रूप में न रंग में धुंधलके का अहसास धरती और आकाश के मिलन का प्रकम्पन प्रकाशित है वातावरण ओह, कितनी...
एक शोर के साथ बच्चे खेल रहे हैं बच्चों का शोर ऐसा पाठ नहीं है कि सूंघा जाय बावजूद इसके कि सी0 आई0 डी0 सूंघ रहे हैं सूंघने को बहुत कुछ है...
एक अच्छी कविता जिसमें समूची जिन्दगी हो नदी सी खिलखिलाती निरन्तर आगे बढ़ती हुई समुद्र सी पूर्णता हो कविता संघर्षरत जिन्दगी है रोटी के लिए...
बसन्त आ गया आंगन में गीत गाने को हुआ मन पहाड़ों में बसंत आने लगा खेतों में मिट्टी की फैल गई सौंधी सुगन्ध मन प्राण में रच बस गई फ्यूली और...
श्रद्धा अर्थात् विश्वास वीर्य अर्थात् मन का तेज स्मृति समाधि अर्थात् एकाग्रता प्रज्ञा अर्थात् सत्य वस्तु का विवेक समष्टि में व्यष्टि तो...
पंजाब हो या मिजोरम दंगे हों या हुई हो कहीं सरहद पर झड़प हर मोर्चे पर सबसे आगे है ग्यारहवीं बटालियन दुश्मन भीतर का हो या बाहर का हर जगह...