अनचाहे सम्बन्धों की
अखर गई यह बरखा
बिन बुलाये क्यों कर
आई यह मूसलाधार वर्षा
सिमट गई फाल्गुन की
मदमाती गांव की धरती
पूस गांव की कंपकंपी को
फिर बुला लाई यह बरखा
अधूरे जोते खेतों से
हल आ गया वापस घर में
दादी की फिर जल गई धूनी
जिसे घेर कर बैठे हैं नाती-पोते
हाथ गरमाते सुन रहे हैं वो
दादी के मुंह से खट्टे-मीठे किस्से
आसमान की मां ने कहा था
कुछ और बन लो
पर आसमान न बनना भूल से बेटा
बेमौसम बरसोगे-गाली खाओगे
हठी था बेटा
मां की एक न सुनी
और आसमान बन गया अपनी हठ में
इसलिये जब तब गाली खाता है
फिर भी अपनी ही मर्जी करता है
यह कह कर खरी खोटी सुनाई आसमान को दादी ने।
– उमेश डोभाल
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