सरपट भागते घोड़े की तरह नहीं अलकनंदा के बहाव की तरह धीरे धीरे आयेगा बसंत बसंत की पूर्व सूचना दे रहे हैं
मिट्टी पानी और हवा से ताकत लेकर तने से होता हुआ शाखाओं में पहुंचेगा बसंत
अंधेरे में जहां आंख नहीं पहुंचती लड़ी जा रही है एक लड़ाई खामोश हलचलें अंदर ही अंदर जमीन तैयार कर रही हैं जागो! बसंत दस्तक दे रहा है
खूटी पर टंगे थिगलाये कोट की तरह
मैं भी उम्र भर चिन्तायें ढोता रहा हूँ
इस वर्ष चाहता हूँ
वसंत को देखू
परखू और उल्लास के साथ मनाऊ वसंत
पहाड़ों में वनस्पति के साथ
चेहरों पर खिलना चाहता हूँ।
जागो बसंत दस्तक दे रहा है
– उमेश डोभाल
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