top of page

जागो बसंत दस्तक दे रहा है

  • Writer: Umesh Dobhal
    Umesh Dobhal
  • Sep 24, 2022
  • 1 min read

Updated: Sep 25, 2022

सरपट भागते घोड़े की तरह नहीं अलकनंदा के बहाव की तरह धीरे धीरे आयेगा बसंत बसंत की पूर्व सूचना दे रहे हैं


मिट्टी पानी और हवा से ताकत लेकर तने से होता हुआ शाखाओं में पहुंचेगा बसंत


अंधेरे में जहां आंख नहीं पहुंचती लड़ी जा रही है एक लड़ाई खामोश हलचलें अंदर ही अंदर जमीन तैयार कर रही हैं जागो! बसंत दस्तक दे रहा है


खूटी पर टंगे थिगलाये कोट की तरह

मैं भी उम्र भर चिन्तायें ढोता रहा हूँ

इस वर्ष चाहता हूँ

वसंत को देखू

परखू और उल्लास के साथ मनाऊ वसंत

पहाड़ों में वनस्पति के साथ

चेहरों पर खिलना चाहता हूँ।


जागो बसंत दस्तक दे रहा है




– उमेश डोभाल

Recent Posts

See All
घर लौटने का समय

पहाड़ियों की चोटियों पर तना वर्षा के बाद का खुला-खुला सा आसमान कहीं तैरते उड़े-उड़े से बादल और पहाड़ी पगडंडी का अकेला सफर लम्बी गर्मियों...

 
 
 
सावधान !

जब वे आते हैं और कहते हैं हम खुशियां लायेंगे तुम्हारी थकी हुई और उदास जिन्दगियों में वे झूठ बोलते होते हैं उनकी भाषा की नरमी में एक...

 
 
 
कल रात नींद नहीं आयी

कल रात भर नींद नहीं आई कल रात भर करवटें बदलता रहा कल रात कुछ अजीब थी कल रात भर प्यास सताती रही आसपास कोई नहीं था इतनी सी बात थी और कल...

 
 
 

Comments


bottom of page