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Writer's pictureUmesh Dobhal

धूप भी तो छांव भी है जिन्दगी

जिधर उड़ाया उड़ गये

धूप भी तो छांव भी है जिन्दगी


गांव में क्या रुकी एम्बेसडर नई

शीशों को छूते बच्चे हो गई जिन्दगी


मल्यो' की डार से स्वप्न

पलक मंदते ही कहां-कहां हो आई जिन्दगी


बाबू ने अनुभवों से सीखने की जो कही

अनुभवों के ही खिलाफ हो गई जिन्दगी


वह हंसी नजरों से हंसी

फूलों से लदी बेल सी हो गई जिन्दगी


उम्रदार होने को आतुर मन

हुक्के की गुड़गुड़ाहट में खो गई जिन्दगी।


– उमेश डोभाल

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