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कितनी तृष्णा थी

  • Writer: Umesh Dobhal
    Umesh Dobhal
  • Sep 25, 2022
  • 1 min read

सावन में बरसते बादल

एकाकार हैं सब

न रूप में न रंग में

धुंधलके का अहसास

धरती और आकाश के

मिलन का प्रकम्पन

प्रकाशित है वातावरण

ओह, कितनी तृष्णा थी

बरसता जा रहा है बादल

भय जनित संकुचन नहीं है

पर आगामी विरह व्यथा का सूचक

आह्वान किया लट बिखराई

रौद्र रूप सह लूंगी तेरा

पर आनन्द की सीमाओं का क्यों अतिक्रमण।

– उमेश डोभाल

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