top of page

मेरा गांव

  • Writer: Umesh Dobhal
    Umesh Dobhal
  • Sep 27, 2022
  • 1 min read

रिमझिम बरसात में

प्यास-प्यास पुकार रहा है मेरा गांव


अहा !

ग्राम्य जीवन से कोसों दूर है मेरा गांव


या परती-परीकथा का

कोई अदना सा मुरीद है मेरा गांव

हर साल टूटा हुआ

ऐसा दरख्त है मेरा गांव

पटवारी की खसरा खतौनी में

अब छत्तीस वर्ष का जवान है मेरा गांव


तब से खैरियत पूछता

अब मंच बना मूक नहीं है मेरा गांव।



– उमेश डोभाल

Recent Posts

See All
घर लौटने का समय

पहाड़ियों की चोटियों पर तना वर्षा के बाद का खुला-खुला सा आसमान कहीं तैरते उड़े-उड़े से बादल और पहाड़ी पगडंडी का अकेला सफर लम्बी गर्मियों...

 
 
 
सावधान !

जब वे आते हैं और कहते हैं हम खुशियां लायेंगे तुम्हारी थकी हुई और उदास जिन्दगियों में वे झूठ बोलते होते हैं उनकी भाषा की नरमी में एक...

 
 
 
कल रात नींद नहीं आयी

कल रात भर नींद नहीं आई कल रात भर करवटें बदलता रहा कल रात कुछ अजीब थी कल रात भर प्यास सताती रही आसपास कोई नहीं था इतनी सी बात थी और कल...

 
 
 

Commentaires


bottom of page