रात भर
- Umesh Dobhal
- Sep 25, 2022
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सांय-सांय करते भग्न अवशेष
किसी के साकार हुए स्वप्नों की परिणति
निज उर में नितान्त निजी शोभा समेटे है
इन्हें सिर्फ तुम्ही दुलारना
छूटती है परत दर परत
अंधेरों की कतरनों में
कितने स्वप्नों का भार वहन करती है
रात्रि रात भर
इसे अपना ही न बना लेना
वह कोई रेशमी तन्तुओं के जाल में
नित्य बदलता है नए वेश में
मेरे बदलते परिवेश में
उसे तुम्हीं अपनेपन में बांध न लेना।
– उमेश डोभाल
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