जब वे आते हैं
और कहते हैं
हम खुशियां लायेंगे
तुम्हारी थकी हुई और उदास जिन्दगियों में
वे झूठ बोलते होते हैं
उनकी भाषा की नरमी में
एक तानाशाह छुपा होता है
तुम्हारी खुशियों से उन्हें क्या लेना-देना
मक्कारी जिनकी नस-नस में भरी है
वे अपने में ही जीते हैं
गुबरैले कीड़े की तरह
वे अपने अहम को ढोते फिरते हैं
सावधान! वे तुम्हारी शेष बची हुई खुशियों को
छीनने आये हैं
वे जीते ही छीना झपटी पर हैं
वे जीवित ही हम पर हैं
वे हमें क्या देंगे
पृथ्वी के चप्पे-चप्पे पर तुम्हारा परिश्रम चस्पां है
सौन्दर्य तुम्हारी कड़ी मेहनत का परिणाम है
ये सड़कें ये भवन ये खेत
सब तुम्हारे हैं
तुम्हारे ही भाइयों ने बनाई हैं
ये मोटरें ये जहाज और वह सब कुछ
जिससे तुम वंचित रखे गये हो
वे कौन होते हैं देने वाले
ये मक्कार तुम्हें क्या देंगे
– उमेश डोभाल
Comments