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व्यष्टि-समष्टि

  • Writer: Umesh Dobhal
    Umesh Dobhal
  • Sep 25, 2022
  • 1 min read

श्रद्धा अर्थात् विश्वास

वीर्य अर्थात् मन का तेज

स्मृति समाधि अर्थात् एकाग्रता

प्रज्ञा अर्थात् सत्य वस्तु का विवेक


समष्टि में व्यष्टि तो सृष्टि की योजना है

मनुष्य व्यष्टि है और ठीक उसी समय समष्टि है

अपने व्यक्तिगत स्वरूप की सिद्धि करते हुए

हम अपने राष्ट्रीय और विश्वव्यापी स्वभाव की सिद्धि करते हैं।


प्रत्येक व्यक्ति एक निःसीम वृत्त है ।

जिसका केन्द्र सर्वत्र है और परिधि कहीं नहीं

साधना से हर कोई विश्वात्मा का अनुभव कर सकता है

यही हिन्दू धर्म का तत्व है।


अद्वैतवाद में जीवात्मा नहीं होती

वह केवल एक भ्रम है

द्वैतवाद में एक जीव होता है

जो ईश्वर से असीम रूप से भिन्न है।


– उमेश डोभाल

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