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Writer's pictureUmesh Dobhal

व्यष्टि-समष्टि

श्रद्धा अर्थात् विश्वास

वीर्य अर्थात् मन का तेज

स्मृति समाधि अर्थात् एकाग्रता

प्रज्ञा अर्थात् सत्य वस्तु का विवेक


समष्टि में व्यष्टि तो सृष्टि की योजना है

मनुष्य व्यष्टि है और ठीक उसी समय समष्टि है

अपने व्यक्तिगत स्वरूप की सिद्धि करते हुए

हम अपने राष्ट्रीय और विश्वव्यापी स्वभाव की सिद्धि करते हैं।


प्रत्येक व्यक्ति एक निःसीम वृत्त है ।

जिसका केन्द्र सर्वत्र है और परिधि कहीं नहीं

साधना से हर कोई विश्वात्मा का अनुभव कर सकता है

यही हिन्दू धर्म का तत्व है।


अद्वैतवाद में जीवात्मा नहीं होती

वह केवल एक भ्रम है

द्वैतवाद में एक जीव होता है

जो ईश्वर से असीम रूप से भिन्न है।


– उमेश डोभाल

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