top of page
Writer's pictureUmesh Dobhal

युद्व में हूं

बहते हुए झरने, गाड-गधेरे

पहाड़ों की चोटियां

बुग्याल और उनका फैलाव

अच्छे लगते हैं

गीत गाते ग्वाले को

हलवाहों को

बैलों की चुनींदा भाषा में

निर्देश देते हुए


मैं प्यार करता हूं

पहाड़ी सड़क के मोड़

ढलान पर उगे चीड़-वन

अच्छे लगते हैं

कितने अच्छे हैं वे गीत

जो बेजुबानों की जुबान हों

जो अनगढ़ रूप हों प्यार के

मैं उन्हें तराशना चाहता हूं

वह हवा जो हिमालय से आती है

भली लगती है


मुझे अब भी खींचते हैं

घिंघोरू का डंडा और गुल्ली

हल-बैल बन जाने का खेल

मैं इन सबका हिस्सा होना चाहता हूं

इसलिए युद्व में हूं

-उमेश डोभाल

2 views0 comments

Recent Posts

See All

घर लौटने का समय

पहाड़ियों की चोटियों पर तना वर्षा के बाद का खुला-खुला सा आसमान कहीं तैरते उड़े-उड़े से बादल और पहाड़ी पगडंडी का अकेला सफर लम्बी गर्मियों...

सावधान !

जब वे आते हैं और कहते हैं हम खुशियां लायेंगे तुम्हारी थकी हुई और उदास जिन्दगियों में वे झूठ बोलते होते हैं उनकी भाषा की नरमी में एक...

कल रात नींद नहीं आयी

कल रात भर नींद नहीं आई कल रात भर करवटें बदलता रहा कल रात कुछ अजीब थी कल रात भर प्यास सताती रही आसपास कोई नहीं था इतनी सी बात थी और कल...

Comments


bottom of page