बहते हुए झरने, गाड-गधेरे
पहाड़ों की चोटियां
बुग्याल और उनका फैलाव
अच्छे लगते हैं
गीत गाते ग्वाले को
हलवाहों को
बैलों की चुनींदा भाषा में
निर्देश देते हुए
मैं प्यार करता हूं
पहाड़ी सड़क के मोड़
ढलान पर उगे चीड़-वन
अच्छे लगते हैं
कितने अच्छे हैं वे गीत
जो बेजुबानों की जुबान हों
जो अनगढ़ रूप हों प्यार के
मैं उन्हें तराशना चाहता हूं
वह हवा जो हिमालय से आती है
भली लगती है
मुझे अब भी खींचते हैं
घिंघोरू का डंडा और गुल्ली
हल-बैल बन जाने का खेल
मैं इन सबका हिस्सा होना चाहता हूं
इसलिए युद्व में हूं
-उमेश डोभाल
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